हो क्या रहा है ? एक तरफ जब पूरा देश कोरोना के आतंक से काँप रहा है, जब कई करोड़ प्रवासी मजदूर जान बचाने के लिये भुखा पेट मील दर मील पैदल चल रहा है,सामाजिक दूरी बरकरार रखने के नाम परजनता को अकेला घर में अलग थलग रहकर जीने की सलाह दी जा रही है,ठीक उसी समय हमलोगों की केन्द्र सरकार पैकेज के नाम से देश के मजदूर किसान की रोजी रोटी देशी विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथ सौंप रही है।मोटे तौर पर यह साफ समझा जा सकता है की कोरोना आतंक का इस्तेमाल कर सरकार आर्थिक सुधार के नाम देश को और ज्यादा से ज्यादा पूंजीपतियों के हाथ सौंपने की य़ोजना बना रही है।वे लोग बड़े जबरदस्त ढंग से जनता के सत्यानाश के माहौल का फायदा उठाकर पूंजीपतियों की पाँचों उँगली घी में डालने का इंतजाम कर रही हैं।
सरकार के इस पहलकदमी में से एक खास कदम है,कृषि क्षेत्र में सरकार का नई योजनाएं सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार का कुछ ऐसा कदम लिया है जिसके फलस्वरुप गरीब किसान,मझोले किसान को बरबादी की तरफ धकेल कर उत्पादन के ऊपर देशी विदेशी पूंजीपतियों का एकाधिकार कायम होगा।
इतनी अवधि तक हमारे देश में कृषि क्षेत्र एक संकट के दौर से गुजर रही थी इसे सभी स्वीकार करेंगे।मोदी सरकार उन समस्याओं के हल का रास्ता न अपना कर असल में जो किसान हैं उनको ही कृषि से बेदखल कर कृषि उत्पादन को देशी विदेशी कम्पनियों के हाथ सौंप देना चाहती है। जैसे, किसानों की लम्बे अरसे से एक महत्वपूर्ण मांग थीउन्हें फसलों की लाभकारी कीमत नहीं मिल पा रही है।इसे लेकर किसानों में गुस्सा भी देखा गया है।किसान द्वारा आत्महत्या व पुलिस की गोलीसे किसानों की मृत्यु इस सच्चाई को बार-बार सामने ले आई है।
सरकार भी दबाव में आकर सभी मांग न माननें पर भी कई एक कदम उठाने पर मजबूर हुई थी।देश की कृषि क्षेत्र मेंउत्पादक और खरीदार के बिच में दलाल, आडतिया, जमाखोर यानीतरह तरह के बिचौलिया लोगहै, जो कृषि का लाभ हथिया रहे हैं,इस सच्चाई को मानकर उस समस्या के हल के हिसाब से फसल की न्यूनतम सहायक मूल्य व सरकारी हस्तक्षेप में मंडी के माध्यम से फसल खरीदने की प्रक्रिया चालू किया गया था। सरकार की यह पहल ही साबित करती है कि अब तक किसान लोग खुले बाजार में पैदावार बेच कर लागत मूल्य तक नहीं निकालपा रहे थे।
लेकिन भाजपा सरकार के ही नये पैकेज में कहा गया है कि इसबार से किसान मंडी के बदले जहाँ जी चाहे फसल बेच सकेंगे।साथ साथ गर्व के साथ ऐलान किया गया,``किसानों के सामने और कोई अड़चन न रहने से आनेवाले दिनो में किसान दूसरे राज्य में यहाँ तक कि विदेशों में भी फसल बेचकर और ज्यादा लाभ उठा पायेंगे। तब इतने दिनों तक मंडी और न्यूनतम सहायक मूल्य लेकर मोदीजी का किसानों के प्रति हमदर्दी का जो चेहरा दर्शाया जा रहा था, वह एक बड़ी चूक थी ?
अचानक ऐसा क्या उलट-फेर हुआहै कि इतने दिन जो किसानों ने खुले बाज़ार में फसल बेच कर बार-बार घाटे की सामना कर रहे थे, अब से वह किसान बाजार से काफी लाभ उठा पाएंगे? या असली बात है काफी दिनों से ही रिलायन्स व अदानी जैसे पूंजीपतियों की क्रूर नज़र किसानों की जमीन व फसल के ऊपर पड़ी थी। इसबार मोदीजी उनका लालच पूरा करने का इंतजाम कर दिए।
कृषि क्षेत्र में भाजपा का“महान क्रान्तिकारी सुधार”जिसके बल पर इसबार कृषि का क्रान्तिकारी बदलाव होने वाला है,आइये देखा जाए क्या है। उस कृषि सुधार कार्यक्रम में है और बाद में देखा जायेगा इसका प्रभाव कृषि क्षेत्र में किस तरह पड़ेगा।
*कृषि उत्पाद कानून में बदलाव लाया गया।अनाज,खाद्यतेल,तिलहन, दाल,आलू,प्याज पर और कोई सरकारी नियंत्रण नहीं रहेगा।
*खाद्य प्रसंस्करण संस्था,निर्य़ातकारी संस्थाएं जितना चाहे फसल भण्डारण कर सकेंगी।
*किसान लोग मंडी के बदले जहां जी चाहे फसल बेच सकेंगे।
*निर्बाध रूप से एक दूसरे प्रदेश मेंपैदावार का व्यापार कर सकेंगे ।
यानी, दो टूक शब्दों में कहा जा सकता है किसानों के उत्पादित फसलों के ऊपर से सरकारी नियंत्रण हटा दिया गया।
लेकिन, सवाल यह है कि इसके नतीजे में किसान समुदाय किस तरह लाभान्वित होंगे ?
पहले तो, किसान आमतौर पर फसलों को संचित कर रखने के पक्षधर नहीं हैं।सिर्फ बाजार में सही कीमत न मिलने पर या कहना बेहतर होगा किबाद में ज्यादा कीमत मिलेगा इस उम्मीद में कुछ किसान थोडा सा अनाज संचित रख सकते हैं। लेकिन ये किस किस्म के किसान हैं ? गरीब, मझोले या सरकारी परिभाषा में जिसे सीमांत किसान कहा जाता है उनमे से अधिकांश ही फसल बेच कर जल्दी कर्जा चुकाते हैं और परिवार के गुजारे का इन्तेजाम करते हैं | उन लोगों के पास फसल जमा रखना संभव नहीं है। याद रखना चाहिए हमारे देश में बहुसंख्यक किसान इस स्तर केही हैं।एक छोटा सा हिस्सा ही बड़ा व अमीर किसान है जिनके लिए इसका लाभ उठाना संभव है।
दूसरी बात, किसान लोग मंडी के बदले जहाँ जी चाहे फसल बेच सकेंगे। उसके लिए सरकार परिवहन खर्च के एक हिस्सेकी जिम्मेदारी लेगी ।बहुत अच्छी बात है ।लेकिन सवाल है किसानखेती का काम करेंगे या व्यापार करेंगे?छोटे औरमझोले किसानों का व्यक्तिगत रुप में इतना परिमाण पैदावार तैयार नहीं होता है कि वे लोग भिन्न भिन्न बाजारों में घूम घूमकर अपनी फसल बेचने जाएंगे।और किसानों के सिर पर सवार दलाल,अढ़तिया, व्यापारियों की बड़ी टोली भी अचानक रातों-रात गायब हो जायेगीक्या ? जैसे मानिए मिल मालिक क्या सरासर किसानों से फसल खरीदेगा ? वे लोग तो ट्रकों से लदा फसल अपने एजेन्टो के माध्यम से खरीदते हैं। तब इससे निष्कर्ष क्या निकला ?मंडी का सिस्टम ख़त्म कर, सरकारी सहायक मूल्य खत्म कर, असल में किसानोंकोखास कर गरीब, मझोले किसानों को पूरी तरह व्यापारियों के हाथ में छोड़ दिया गया है । वे तो इतने अरसों से जो करते आये हैं वही करेंगे।अत:किसानों का सत्यानाश होगा ।असल में मतलब कुछ और है, जो अभी साफ होगा।
खाद्य प्रसंस्करण संस्था समूह, निर्य़ातकारी लोग जितना चाहे भंडार में संचित कर फसलों को रख सकेंगे। यानी अभी से रिलायन्स,अदानी जैसी बड़ी बड़ी कम्पनियां फसलों केसबसे बड़े हिस्से पर कब्ज़ा जमाकर उसे अपने ब्रांड में पैक कर राष्ट्रीय बाज़ार व विदेशी बाज़ार में बेचेंगे । और हमेशा की तरह काफी मुनाफा कमाएंगे।किसानों का खून पसीना बहाकर पैदा किये फसल बेचकर चन्द कंपनियां मुनाफा का पहाड़ तैयार करेंगी और किसान लोग बर्बादी के शिकार होंगे।जो लोग सोचते हैं और दूसरो को समझाना चाहते हैं कि बड़ी बड़ी कम्पनियांकिसानों को समुचित कीमत देंगी और उससे किसानों कोलाभ होगा,इसे विश्वास करना और चिड़ियाघर में शेर के पिंजरे में घुसकर यह उम्मीद रखना कि शेर उसे दुलारेगा,यह दोनो एक ही तरह कीबेवकूफी है।
असल में यह एक बड़े पैमाने की साजिश है।वह है पूर्ण रुप से किसानों को जमीन छोड़ने के लिये विवश न कर, धीरे धीरे उनको बरबादी के कगार पर ले जाना, जिससे वे किसान जमीन छोड़कर भागें या रिलायन्स, अदानी जैसे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अधीन रहकर कन्ट्राक्ट फार्मिंग या अनुबंध के खेती करने में लाचार हो।
क्योंकि केन्द्र के ``आत्मनिर्भर’’ होने का चमकदार पैकेज के नतीजे में किसान पूरीतरह व्यापारियों और कम्पनियों पर क्रमिक रुप से निर्भरशील होते जायेंगे।फसल बेचने के लिये इसे छोड़ कर और कोई रास्ता खुला नहीं रहेगा ।
गौर करने की बात है कि इसी बीच में भारत का कृषि उपकरणो व लागत के लिए यानी बीज,कीटनाशक,खाद आदि के लिएकिसान देशी विदेशी पूंजीपतियों पर निर्भरशील हो चुके हैं।
अब वे लोग भाजपा का हाथ थाम कर फसल के ऊपर एकाधिकार कायम करने के रास्ते पर आगे बढ़रहे हैं।आने वाले दिनो में देश के अनाज पर इन कंपनियों का नियंत्रण चालू होने पर वे अनाज के मूल्य का नियंत्रण भी करेंगे।इसलिए, सिर्फकृषि या किसान नहीं, बल्कि पूरे भारतवासी की तकदीर में ही स्थायी रूप से परेशानी मंडरा रही है ।
कोरोना, लॉक-डाउन जैसे बुरे दिन में मोदी सरकार पूंजीपतियों के लिये एक जबरदस्त भेंट दिया है। वे बड़ी कंपनी वाले भाजपा व मोदी को वाहवाही दे रहे हैं इसमें ताज्जुब की बात क्या है ?
सर्वहारा पथ सम्पादक मंडली की ओर से --- 7 जून ,2020
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